“क से ज्ञ तक”~व्यंजन कविता
Hindi Vyanjan Poem
काम करूँ मैं घर के सारे
खाना सब का बनाती हूँ
गाय जैसी बंधी रहूं मैं
घर से बाहर नहीं कहीं जाती हूँ
चुपचाप मैं रहती हूँ
छम छम नहीं हूँ उछलती
जब कोई बनवाए चाय
झट से चाय बनाती हूँ
टर्र-टर्र मुझपर टर्राते हो
ठीक नहीं कोई बात है करता
डरा कर और दिखा कर गुस्सा
ढेरों काम करवाते हो
तुम को हाल बतलाऊँ मैं
थक कर चूर हो जाऊँ तब भी
दर्द मेरा कोई जाने ना
धक् धक् धड़के दिल मेरा
चैन इक पल भी न पाऊँ मैं
पकड़ी जब से घर की ज़िम्मेदारी
फटाफट से काम किए सभी के
बनाकर पकवान तरंह तरंह के
भरपेट खिलाया भोजन सभी को
मैंने खुद को आखिर में आँका
यह हाल हुआ अब मेरा ऐसा
रूठी कभी तो नहीं मनाया
लेकर खुद ही खाना खाया
विश्वास से खुद को मैंने संभाला
शादी के सब फ़र्ज़ निभाए
साथ निभाया, काम किए सब
षटकोण सा बन गया तन मन मेरा
हार न मानी जीवन से तब
क्षमा की रही न सीमा कोई
त्रिकोण बना ये जीवन मेरा
ज्ञान सिखाया सब ने मुझको
पर नहीं समझा मन मेरा।।।
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