“Swami Vivekananda Biography”| “स्वामी विवेकानंद की जीवनी”

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“Swami Vivekananda Biography”

12 जनवरी 1863- जन्म (कलकत्ता, वेस्ट बंगाल)

1879- प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश

1880- जनरल असेंबली इंस्टीटूशन में प्रवेश

नवंबर 1881- गुरु रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट

1882 से1886 – गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ जुड़े रहे

1884- स्नातक परीक्षा पास की, पिता का निधन

16 अगस्त 1886- गुरु परमहंस जी का निधन

1886- वराहनगर मठ की स्थापना

1890 से 1893- बतौर सन्यासी भारत भ्रमण

11 सितम्बर 1893- शिकागो में विश्व धर्म सम्मलेन

27 सितम्बर 1893- शिकागो में अंतिम व्याख्यान

1897- रामकृष्ण मठ की स्थापना

4 जुलाई 1902- महासमाधि

“Swami Vivekananda Biography”

Swami Vivekananda  जन्म व् पारिवारिक परिचय :

भारत के महान समाज सुधारक, विचारक और दार्शनिक माने जाने वाले “स्वामी विवेकानंद” का जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 व संवत 1920 में हुआ। विवेकानंद का बचपन का नाम “नरेन्द्रनाथ दत्त” था तथा इन्हें “नरेन” नाम से भी पुकारा जाता था।

स्वामी विवेकानद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कि कलकत्ता हाईकोर्ट के जाने माने वकील थे। इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जोकि बड़ी ही धार्मिक विचारों वाली व देश भक्त थी। इनका जीवन काल 1841 से 1911 तक रहा।

स्वामी विवेकानंद के दादा जी नाम दुर्गाचरण दत्त था जोकि संस्कृत व पारसी के विद्वान थे और दादी का नाम श्याम सुंदरी देवी था। तथा इनके नाना जी का नाम नन्द लाल बासु था। पूरा परिवार धनी, दयाभाव व उदारता के लिए विख्यात था। विवेकानंद के पिता गरीबों के प्रति बहुत ही सहानुभूति रखते थे। इनके कुल 9 बच्चे थे जिनमें से एक विवेकानंद थे और कुछ बच्चों की बचपन में ही आकस्मिक मृत्यु हो गयी थी। नरेंद्र नाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) की बहन का नाम स्वर्णबाला था तथा दो भाइयों के नाम महेन्द्रनाथ व भूपेन्द्रनाथ थे।

 

विवेकानंद की शिक्षा :

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही ऐसे माहौल में रहे जहाँ दया भावना, सहानुभूति और रचनात्मक विचारों का बोल बाला था। इनके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे और वह अपने बच्चों को भी अंग्रेज़ी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने पर बल देते थे। लेकिन विवेकानंद के मस्तिष्क पर भगवान की खोज को लेकर बातें छाई रहती थी। सन 1871 में जब वह 8 वर्ष के हुए तब पाठशाला गए। बाद में उन्होंने सन 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। 1881 में ललित कला की परीक्षा पास की और 1884 में ललित स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई में वह बहुत होशियार हुआ करते थे।

 

विवेकानंद की रूचि व गुरु से पहली मुलाकात :

स्वामी विवेकानंद की संगीत, गायन, साहित्य, कविता व भजन इत्यादि में बहुत रूचि रखते थे। एक बार किसी मित्र के साथ इन्हें परमहंस महाराज की सभा में जाने का मौका मिला वहां इन्हें भजन गाने का अवसर प्राप्त हुआ। जब इन्होंने भजन गाया तो संत परमहंस इनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। नवंबर 1881 का वह समय था जब इनकी गुरु परमहंस से पहली बार मुलाकात हुई थी। सन 1884 में पिता की मृत्यु के पश्चात सांसारिक पीड़ा से ग्रसित हो गुरु परमहंस की शरण में गए और उनके शिष्य बन गए।

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सन्यासी जीवन, यात्राएं व समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना :

परमात्मा को पाने की लालसा में इन्होंने एक सन्यासी का जीवन अपनाया। साधनारत रहते हुए भी वे ईश्वर की खोज के प्रति संतुष्ट नहीं हुए। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने सन्यासी के तौर पर ही भारत भ्रमण की ठानी और पैदल ही भारत यात्रा पर निकल गए देश में फैली गरीबी और पिछड़ेपन को देखकर भारत के स्तर को ऊंच उठाने की सोची। तब इन्होंने भारतीय समाज व धर्म सुधार के लिए हिन्दुओं में आत्मविश्वास का भाव लाना चाहा। सामाजिक दृष्टि से हिन्दू समाज के उत्थान के लिए कार्य किए।

स्वामी विवेकानंद का यह मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिस से चरित्र निर्माण हो। हर कोई स्वावलम्बी बने तथा मनुष्य का पूर्ण विकास हो। साथ ही महिलाओं को भी शिक्षा के प्रति जागरूक किया। जिससे देश की उन्नति हो। इन्होंने तपस्वी तथा त्यागी महिलाओं को प्रशिक्षण देना जरुरी समझा ताकि ये महिलाएं अन्य महिलाओं को शिक्षा दे सकें।

 

सितम्बर 1893, अमेरिका में धर्म सम्मलेन :

31 मई 1893 को अपनी यात्रा प्रारम्भ की और वह जापान, चीन और कनाडा का दौरा करते हुए सितम्बर 1893 को वह अमेरिका के शिकागो में आयोजित हुए विश्व धर्म सम्मलेन में भारत के प्रतिनिधि के तौर पर पहुंचे। इस सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद ने भाग लिया और भारत की विजय पताका फहराई। इन्होंने दुनिया को ये एहसास करवाया कि विश्व गुरु अगर कोई है तो वह भारत है। वहां इन्हें बहुत मान सम्मान मिला और कईं विदेशी इनके शिष्य बन गए। वे 3 वर्षों तक अमेरिका में रहे। जब तक वे अमेरिका में रहे वहां के लोग तब तक उनके ज्ञान और तेज को देखकर उनके मुरीद हो गए थे। यहाँ तक कि उन्हें ” साइक्लोनिक हिन्दू ” कहा जाने लगा था। 

स्वामी विवेकानंद ने स्वयं इस बात को भी जाना कि ईश्वर हमारे और प्रत्येक प्राणी में है। इसी माध्यम से सभी को प्रेरित किया कि अपने अंदर के ईश्वर को जगाकर अपनी अच्छाइयों का देश निर्माण में उपयोग किया जा सकता है।

मनुष्य के पूर्ण निर्माण को सही दिशा दिखाने के लिए इन्होंने योग भी जोड़ा। सभी लोगों में देश के लिए प्रेम भावना जगाना और अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम करने के लिए इन्होंने सभी को प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद के अनेकों ऐसे महान कार्यों के कारण देश ही नहीं विदेशों में भी इनके अनेकों अनुयायी बने। क्योंकि इन्होंने समझाया कि किसी भी कार्य को करने के लिए एकाग्रता ज़रूरी है और इस के लिए ध्यान आवश्यक है, और फिर अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

इन्होंने सभी युवाओं को यह प्रेरणा दी कि जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए तब तक अपने कार्य की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

“Swami Vivekananda Biography”

 स्वामी विवेकानंद के शिक्षा के प्रति सिद्धांत :
  • शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे कि बालकों के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बच्चे आत्मनिर्भर बने। 
  • विद्या ऐसी हो जिससे बालकों का शारीरिक, मानसिक व् आत्मिक विकास हो सके। 
  • सभी को समान शिक्षा मिलनी चाहिए, चाहे बालक हों या बालिकाएं।
  • धार्मिक शिक्षा पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण व संस्कारों द्वारा देनी चाहिए। 
  • शिक्षा गुरु गृह में प्राप्त की जासकती है। 
  • शिक्षक और विद्यार्थी का सम्बन्ध निकट का होना चाहिए। 
  • शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन में संघर्ष करने की शक्ति दे। 
  • मानवीय एवं राष्ट्रिय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए। 
  • देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनिकी शिक्षा पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। 
  • व्यक्ति को अपनी रूचि को महत्व देना चाहिए। 

 

जीवन का आखिरी वक़्त :

सन 1901 में जापान में विश्वधर्म सम्मलेन में स्वामी विवेकानंद हिस्सा नहीं ले पाए, उन दिनों इनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। 10 जनवरी 1901 में मायवती यात्रा की और सन 1901 में ही मार्च से मई तक पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की। इसके बाद 1902, जनवरी – फरवरी में बौद्ध गया और वाराणसी की यात्रा की व मार्च 1902 में बेलूर मठ (हावड़ा, बंगाल) वापिस आगए। 

4 जुलाई 1902 को प्रातः 3 घंटे तक ध्यान में रहे तथा शाम 7 बजे फिर ध्यान में चले गए। इस दौरान ध्यान अवस्था में ही 39 वर्ष 5 माह 3 दिन की आयु पूर्ण कर महासमाधि लेली। 

इनकी प्रेरणाओं से प्रभावित होकर देश विदेश में “12 जनवरी” का दिन “युवा दिवस” के रूप में मनाया जाता था जोकि याद दिलाता है कि युवा देश के भविष्य निर्माता हैं।   

“Swami Vivekananda Biography”

पढ़ें “famous Quotes of Swami Vivekananda”

 

Priyanka G

Writer | VO Artist | TV Presenter | Entrepreneur

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8 Responses

  1. T.k says:

    Very good

  2. Uma Rani says:

    very nice biography of Vivakanand ji

  3. Anju Gupta says:

    Good

  4. Ishan Mittal says:

    Nice

  5. Harmesh Gupta says:

    Great

  6. TARSEM says:

    👍

  7. Great words about swami vivekananda.

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